इस देश के राजाओं महाराजाओं द्वारा बहुत सारे किले का निर्माण कराया गया जो अपनी एक अलग इतिहास की घटना को समेटे हुए हैं, उन्ही में से एक है झाँसी का किला | हम सभी झाँसी की रानी के बारे जानते है कि कैसे उन्होंने ने अपने राज्य की स्वतंत्रता और आत्मसम्मान के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया, इन्हीं बलिदान और रानी के शौर्य के कहानियों को संजोये हुए झाँसी का किला आज के झाँसी जिले में स्थित है जो पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करता है | किले के अन्दर जाते ही वो सारी बातें जो हमलोगों ने किताबों में पढ़ी थी उसका प्रमाण मिलने लगता है |
तो आइए जानते है झाँसी का किला और रानी लक्ष्मी बाई से जुड़े इतिहास को
झाँसी के किले का निर्माण बुन्देल वंश के पांचवे राजा वीर सिंह बुंदेला ने 17वीं शताब्दी में करवाया था जिनकी राजधानी उस समय ओरछा शहर थी | राजा वीर सिंह ने किले निर्माण ओरछा के सुरक्षा के लिए एक फॉरवर्ड checkpost के रूप में कराया था ताकि ओरछा के किला पर आक्रमण करने पहले दुश्मन को झाँसी के किले में ही रोक लिया जाय | किले का निर्माण बांगर हिल पर किया गया था | किले के निर्माण के बाद ओरछा से लगभग 700 लोगों को यहाँ बसाया गया |
झाँसी का नाम पहले बलवंतपुर था , एक बार राजा वीर सिंह बुंदेला ओरछा किले से झाँसी की तरफ देख रहे थे तो राजा ने अपने मंत्रियों से कहा वो झाँयसी(छाई) जैसा क्या दिख रहा है तो मंत्रियों ने कहा महाराज वो झाँयसी नही वो किला है जिसका निर्माण आपने करवाया है तभी से किले का नाम झाँयसी पड़ गया जो बाद में झाँसी में बदल गया | इस तरह से शहर का नाम झाँसी पड़ा और वीरांगना लक्ष्मी बाई को झाँसी की रानी जिसे बचाने के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया |
झाँसी के किले पर बुन्देलवंश, मराठा और अंग्रेजों का शासन रहा | किले का निर्माण बुदेल वंश के द्वारा किया गया | सन 1730 ईस्वी के आसपास बुन्देलवंश के राजा छत्रसाल बुन्देला ने बाजीराव पेशवा प्रथम को युद्ध में साहयता करने के लिए उपहार के रूप में दे दिया इस तरह झाँसी का किला मराठा डायनेस्टी के अंतर्गत आ गया | बाजी राव ने एक केयर टेकर नारू शंकर को रखकर वापस चले गये फिर 14 साल बाद नेवालकर डायनेस्टी को केयरटेकर के रूप में झाँसी सौंप दी गयी | जिसके पहले प्रसाशक रघुनाथ राव नेवालकर फिर रामचन्द्र राव नेवालकर जिन्हें अंग्रेजों ने महाराज की उपाधि दी फिर तभी से वे झाँसी के राजा माने गये इन्ही के वंशज थे गंगाधर राव सिवराज नेवालकर जिनका विवाह मणिकर्णिका से हुआ जो बाद में झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई के रूप विख्यात हुई | 1842 ईस्वी में लक्ष्मी बाई झाँसी आई और 1851 ईस्वी में राजा-रानी को एक पुत्र हुआ जिसकी 4 महीने बाद मृत्यु हो गयी 1853 ईस्वी में राजा गंगाधर राव अपने मृत्युं से पहले एक सम्बन्धी के पुत्र आंनंद राव को गोद लिया जिसका बाद में दामोदर राव के नाम से नामकरण किया गया | परन्तु उस समय लार्ड डलहौजी के हड़प निति के द्वारा उनके दत्तक पुत्र को अस्वीकार कर दिया गया और रानी के उतराधकारी न होने का हवाला देकर किले को ब्रिटश राज्य में मिला लिया और रानी को 60 हजार सालाना पेंशन दिया जाने लगा |
फिर 1857 ईस्वी में पुरे भारत में स्वतंत्रता संग्राम हुआ और रानी ने पुनः किले पर अधिकार कर लिया और अपने सेना को संगठित किया | अंगेजो ने कैप्टन ह्यूरो के नेर्तुत्व में किले पर आक्रमण कर दिया जिसमे 3 दिन तक भयंकर युद्ध हुआ अंत में किले को अंग्रेजों ने घेर लिया | इस युद्ध में किले को भारी नुकसान हुआ | जब अंग्रेजों ने किले को घेर लिया तब रानी अपने पुत्र को पीठ पर बांधकर अपने घोड़े बादल के साथ किले के ऊँची दीवारों से कूद कर निकल गयी फिर आगे उन्होंने नाना साहब के सेना के साहयता से अंग्रेजों को हराया और ग्वालिएर के किले ओर सहायता के लिए निकल पड़ी | ग्वालिएर के किले से सहयता न मिलने पर फिर उन्होंने अंग्रेजों के आक्रमण का अदम्य साहस के साथ सामना किया जिसमे महारानी लक्ष्मी बाई वीरगति को प्राप्त हुई लेकिन अपनी साहस, वीरता और बलिदान से झाँसी को इतिहास के पन्नों में अमर कर गयी |
रानी के वीरगति के बाद झाँसी अंग्रेजों के अधीन एक यूनाइटेड प्रोविंस के रूप में रहा फिर जब उतर प्रदेश बना तब 1956 ईस्वी में एक जिला बना |
झाँसी किले का निर्माण 15 एकड़ बंगरा पहाड़ी पर दक्षिण शैली में ग्रेनाइट के पथरों से किया गया है जो भारतीय वास्तुकला का एक बेमिसाल उदहारण है
किले को एक फॉरवर्ड checkpost के रूप में बनाया गया था इसलिए सुरक्षा के बहुत सारे निर्माण किये गये हैं | किले की दिवार 13 से 20 फीट चौड़ी है | किले में कुल 10 प्रवेश द्वार है
खंडेराव गेट, दतिया दरवाजा, उन्नाव गेट, झरना गेट, लक्ष्मी गेट, सागर गेट, ओरछा गेट, सैंयर गेट, चाँद गेट |
झाँसी का किला शहर के बिच में है यह झाँसी रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर की दुरी पर है स्टेशन से सिटी बस या ऑटो से जा सकते हैं | झाँसी संग्रहालय से थोड़ी दुरी पर है वहाँ से पैदल भी जा सकते हैं| सबसे नजदीकी हवाई अड्डा ग्वालिएर हवाई अड्डा है जो की 130 किलोमीटर है
किले अन्दर जाने के लिए प्रवेश शुल्क लगता है जो की 25 रूपये है | किला खुलने और बंद होने का समय सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक है
किले के अन्दर बहुत सारे महत्पूर्ण स्थान है जिसमे कुछ इस प्रकार है तो आइए जानते है
पंचमहल , कड़क बिजली तोप , भवानी शंकर तोप , जम्पिंग स्पॉट, फांसी घर, रानी का बगीचा गणेश मंदिर इत्यादि |
किले का प्रवेश द्वार किले के पिछली भाग में है जिसे अंग्रेजों ने दीवार तोड़ कर बनवाया था | अन्दर प्रवेश करते ही देखने को मिलता है विशालकाय तोप जिसका नाम है कड़क बिजली तोप ।
कड़क बिजली तोप जो अपने ज़माने का भारत में दूसरा सबसे बड़ा तोप है इससे बड़ा तोप मात्र अमेर का किला राजस्थान में है | कड़क बिजली तोप को केवल हाथी से एक जगह से दुसरे जगह ले जाया जा सकता था | इस तोप से गोला निकलने पर तड़ित बिजली जैसी कड़क आवाज होती थी इसलिए इसे कड़क बिजली तोप के नाम से जाना जाता है इस तोप को केवल महारानी के मुख्य तोपची गुलाम गौश खान ही चला सकते थे
थोड़ा दूर आगे जाने पर गणेश मंदिर है जिसे मराठा शैली में बनवाया गया है | यहाँ रानी लक्ष्मी बाई रोज पूजा करने आती थी |
थोड़ी आगे जाने पर यह जगह जहाँ महाराजा संगीत और निर्त्य देखते थे |
गणेश मंदिर के समीप सीढयों से उपर जाने पर एक और विशालकाय तोप है जिसे मोती बाई चलाया करती थी पुरे आयरन कास्ट से बने इस तोप की विशालता देखते हीं बनती है | इसे भवानी शंकर तोप के नाम से जाना जाता है क्योंकि कहते है इस तोप में माँ भवानी की शक्तियाँ थी इसके मुख पर हाथी का मुख बना हुआ जो हाथी के बराबर शक्ति को दर्शाता है |
अब किले अन्दर वाले एरिया में जाने के लिए प्रवेश द्वार है जिसके दोनों तरफ दितीय विश्वयुद्ध के समय उपयोग होने वाला मशीनगन रखा गया है जिसकी मारक क्षमता 1500 मीटर थी ऐसे कुल 10 मशीन गन थे जिसमे से केवल 2 किले में है |
अन्दर प्रवेश करने के थोड़े ही दूर पर है दीवाने ए आम जहाँ राजा गंगाधर राव लोगो की समस्याओं को सुनते थे अंग्रजों के कब्जा करते के बाद इस जगह को पानी स्टोर के रूप में बदल दिया |
दीवाने ए आम के सामने में है पंचमहल जो रानी का निवास स्थान था | यह पांच मंजिला था परन्तु उपरी मंजिल को अंग्रेजों ने नष्ट कर दिया रानी पहले मंजिल पर रहती थी | भूतल में रानी का दरबार था जहाँ महत्पूर्ण निर्यण लिए जाते थे दुसरे मजिल पर रानी का झुला था | इसका निर्माण भी राजा वीर सिंह बुंदेला द्वारा किया गया था |
पंचमहल के बायीं ओर मुख्य तोपची गुलाम गौश खान, खुदा बख्श मुख्य अश्वारोही और मोतीबाई का मकबरा है जो अंग्रेजों से युद्ध करते वीरगति को प्राप्त हुए |
किले के ऊपर सुरक्षा दीवारें बनी हुई है जहाँ से सैनिक किले की सुरक्षा में तैनात होते थे किले के ऊपर ही वो जगह जहाँ से रानी अपने पुत्र के साथ किले की दीवाल को फांद गयी थी |
आगे निचे जाने पर है जेल और फांसी घर जहाँ कैदयों को फांसी दी जाती है ये स्थान शिव मंदिर जाने के रास्ते में पड़ता एक बार रानी पूजा करने जा रही थी तभी उन्होंने ने एक कैदी को फांसी देते देख ली फिर राजा से आग्रह करके उन्होंने फांसी को बंद करा दिया और तब गंगधर राव ने कालकोठरी जेल का निर्माण कराया जो बाद में अंग्रेजों द्वारा भी उपयोग किया गया |
फांसी घर के रास्ते से आगे जाने पर है शिव मंदिर जहाँ नावेलकर के वंशज पूजा करते थे रानी लक्ष्मी बाई प्रतिदिन यहाँ पूजा करने जाती थी |
पूजा के बाद रानी लक्ष्मी बाई उद्यान में तलवार और भाले का अभ्यास करती थी जिसे रानी लक्ष्मी बाई उद्यान कहते हैं | यहाँ अब लेज़र साउंड शो भी होता है |
किले के सबसे बाहरी हिस्से को सुरक्षा के द्रिष्टि से बनाया गया है जिसमे तिन लेयर है पहला लेयर में पानी होता था दुसरे लेयर में सैनिक होते थे और तीसरे लेयर में अस्वरोही होते थे
और बीचों बिच एक चबूतरा था जिसपर तोप होती थी जिससे किसी भी दिशा में निशाना लगाया जा सकता था |
इसतरह पूरा किले को आप 3 से चार घंटे में घूम सकते हैं आप गाइड का भी सहारा ले सकते हैं
ये था वीरांगना लक्ष्मीबाई के निवास झाँसी का किला जो उनके दयालुता सुशाशन, संघर्ष वीरता के यादों को पिरोये गर्व के साथ खड़ा है जिसको बचाने के लिए लक्ष्मी बाई ने अपने प्राणों की आहुति दे दी |